जी हाँ साथियो आपको यह जानकर कर ख़ुशी होगी की मार्शल आर्ट के जनक कोई और नहीं बल्कि इस सृस्टि के पालन हार भगवान शिव हैं।
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यहाँ आपको बता दें कि आत्मरक्षा से लेकर युद्ध करने तक की सभी कलाएं मार्शल आर्ट में ही आती हैं।
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कुंगफू, तलवार बाजी, किक-बॉक्सिंग, जूडो, सिलम्बम, कसीडो, वुशु, बॉक्सिंग, स्पोर्ट्स कराटे, फुल कांटेक्ट कराटे, मूयी थाई, ताइक्वांडो, सशस्त्र और निहत्थे मुकाबला आदि सभी आर्ट मार्शल आर्ट का ही हिस्सा हैं।
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भगवान शिव ने इस कला का निर्माण मनुष्यों को पाप या क्रूर व्यक्तियों से बचाने के लिए किया था।
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ऋषियों और भिक्षुओं ने कई वर्षों तक भगवान शिव की पूजा की, उसके बाद भगवान शिव ने उन्हें पृथ्वी पर मानवता की रक्षा के लिए नियुद्ध मार्शल आर्ट का आशीर्वाद दिया।
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इस कला की शुरुआत सतयुग में हुई थी। इस युग में ऋषि मुनियों (संत) ने उस कला का अध्ययन किया और अपने शिष्यों को खाली हाथ बिना हथियार के लड़ने के लिए दिया। जब उन लोगों ने इसका उपयोग किया तो इसके परिणाम आश्चर्यजनक निकले।
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नियुद्ध कला (मार्शल आर्ट) का वर्णन रामायण, महाभारत, शिवपुराण, दुर्गापुराण आदि में पहले ही किया जा चुका है।
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प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि त्रेतायुग में भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुगण, परशुराम, जामवंत, हनुमान, शुग्रीव और अंगद मार्शल आर्ट में भलीभांति प्रशिक्षित थे।
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द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, युधिष्ठर, जरासंध, अर्जुन, भीम, कर्ण, घटोत्कच और कई अन्य योद्धा इस कला में निपुण थे। मां काली, मां दुर्गा ने भी कई असुरों का संहार शस्त्र से या बिना शस्त्र से किया था।
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उसके बाद बौद्धों ने भी इस कला को अपनाया और उन्होंने इसे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से फैलाया। इस कला को सीखने का उद्देश्य मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक था।